फर्ज़ नमाज़ सलाम फेर कर दाहिना हाथ माथे पर फेरते हुए पढ़े

 फर्ज़ नमाज़ सलाम फेर कर दाहिना हाथ माथे पर फेरते हुए पढ़े

फर्ज़ नमाज़ का सलाम फेर कर दाहिना हाथ माथे पर फेरते हुए पढ़े

بِسْمِ اللَّهِ الَّذِیْ لَآ اِلَهَ اِلَّا هُوَ الرَّحْمٰنُ الرَّحِيمُ اللَّهُمَّ اَذْهِبْ عَنِّی الْهَمَّ وَالْحُزْنَ○

बिस्मिल्लाहिल्लजी ला इलाहा इल्ला हु वर्रहमानुर्रहीम अल्लाहुम्मा अजहिब अन्निल हम्मा वल-हुजना 

तर्जुमा

मैंने अल्लाह के नाम के साथ नमाज़ खत्म की, जिसके सिवा कोई माबूद नहीं (और) जो रहमान वा रहीम है। ऐ अल्लाह ! तू मुझसे फिक्र और रंज दूर कर दे। – हिस्न हसीन

और तीन बार अस्तगफिरूल्लाह कह कर यह दुआ पढ़े

 اَللَّهُمَّ اَنْتَ السَّلَامُ وَمِنْكَ السَّلَامُ تَبَارَكْتَ يَاذَاالْجَلَالِ وَالْاِكْرَامِ

अल्लाहुम्मा अन्तस्सलामु व मिन्कस्सलामु तबारकता या जल जलालि वल इकराम ।

तर्जुमा-

ऐ अल्लाह ! तू सलामन रहने वाला है, और तुझ ही से सलामती मिल सकती है, तू बरकत वाला है, ऐ बुजुर्गी और अज़्मत वाले

और इन दुआओं में से सब या कोई एक पढ़े

لَآ اِلَهَ اِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَىٍّ قَدِيرٌ : ( بخاری و سلم 

ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहू ला शरीका लहू लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु वाहुवा अला कुल्लि शैइन कदीर० बुखारी व मुस्लिम

तर्जुमा

अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, जो तन्हा है और जिसका कोई शरीक नहीं, उसी के लिए मुल्क है और उसी के लिए सब तारीफ है।

और वह हर चीज़ पर कुदरत रखता है।

اَللّٰهُمَّ لَا مَانِعَ لِمٓا اَعْطَيْتَ وَلَا مُعْطِیَ لِمَا مَنَعْتَ وَلَا يَنْفَعُ ذَا الْجَدِّ مِنْكَ الْجَدُّ ( بخاری ومسلم )

अल्लाहुम्मा ला मानिअ लिमा अतैता वला मुतिया लिमा मनाअ-ता वला यनफऊ जल जद्दि मिनकल जद्दू ०

– बुखारी व मुस्लिम

तर्जुमा-

ऐ अल्लाह ! जो तू दे, उसका कोई रोकने वाला नहीं और जो तू रोके, उसका कोई देने वाला नहीं और किसी मालदार को तेरे अज़ाब से मालदारी नहीं बचा सकती।

اَللّٰهُمَّ اِنِّیٓ اَعُوذُ بِكَ مِنَ الْجُبْنِ وَاَعُوذُ بِكَ مِنَ الْبُخْلِ وَاَعُوذُ بِكَ مِنْ اَرْذَلِ الْعُمُرِ وَاَعُوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ الدُّنْيَا وَعَذَابِ الْقَبْرِ ( بخاری )

अल्लाहुम्मा इन्नी अऊजु बिका मिनल जुबनि व अऊजु बिका मिनल बुखली व अऊजु बिका मिन अर्जलिल उमुरि व अऊजु बिका मिन फितनतिददुन्या व अज़ाबिल कबरी ०

-बुखारी

तर्जुमा-

ऐ अल्लाह ! मैं तेरी पनाह चाहता हूं बुज़दिली से और तेरी पनाह चाहता हूं कंजूसी से और तेरी पनाह चाहता हूं निकम्मी उम्र से और तेरी पनाह चाहता हूं दुनिया के फितने से और तेरी पनाह चाहता हूं कब्र के अज़ाब से।

اَللَّهُمَّ اِنِّیْ اَعُوذُ بِكَ مِنَ الْكُفْرِ وَالْفَقْرِ وَعَذَابِ الْقَبْرِ اَللَّهمَّ اغْفِرْ لِیْ مَا قَدَّمْتُ وَمَا اَخَرْتُ وَمَا اَسْرَرْتُ وَمَٓا اَعْلَنْتُ وَمَٓا اَسْرَفْتُ وَمَٓا اَنْتَ اَعْلَمُ بِهِ مِنِّىٓ اَنْتَ الْمُقَدِّمُ وَاَنْتَ الْمُؤَخِّرُ لَآ اِلٰهَ اِلَّآ اَنْتَ ( ابو داود وغيره )

अल्लाहुम्मा इन्नी अऊजु बिका मिनल कुफरी वल फकरी व अजाबिल कब्रि अल्लाहुम्मग्फिरली मा कद्दमतू वमा अखरतु वमा असररतु वमा अलनतू वमा असरफतू वमा अनता आ-लमू बिही मिन्नी अन्तल मुद्दिमु व अन्तल मुवख्खिरू ला इलाहा इल्ला अनता -अबूदाऊद वगैरह

ऐ अल्लाह ! मैं कुफ्र से और तंगदस्ती से और कब्र के अज़ाब से तेरी पनाह चाहता हूं।

ऐ अल्लाह ! मेरे अगले-पिछले गुनाह और वे गुनाह, जो छुपे तौर पर किये और ज़ाहिरी तौर पर किये, सबको बख़्श दे और मेरे हद से बढ़ जाने को भी माफ फरमा दे और उन गुनाहों को बख़्श दे, जिन को तू मुझसे ज़्यादा जानता है, तू ही आगे बढ़ाने वाला है और तू ही पीछे हटाने वाला है, तेरे सिवा कोई माबूद नहीं।

اَللّٰهُمَّ اَعِنِّىْ عَلٰى ذِكْرِكَ وَشُكْرِكَ وَحُسْنِ عِبَادَتِكَ (ابوداؤد)

अल्लाहुम्मा अइन्नी अला ज़िक्रिका व शुक्रिका व हुसनी इबा दतिका ० – अबूदाऊद

तर्जुमा-

ऐ अल्लाह ! मेरी मदद फरमा कि मैं तेरा जिक्र करूं और तेरा शुक्र करूं और तेरी अच्छी इबादत करूं।

फायदा-हर फर्ज़ नमाज के बाद जो शख़्स आयतुल कुर्सी पढ़ लिया करे, उसके बारे में हदीस शरीफ में इर्शाद है कि ऐसे शख्स को जन्नत के दाख़िले से सिर्फ मौत ही रोके हुए है

– बैहकी

हज़रत उक़्बा बिन आमिर रज़िअल्लाहु अन्हु का बयान है कि रसूले अक्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे हुक्म दिया कि हर फर्ज़ नमाज़ के बाद मुअव्वजात यांनी ‘कुल या अय्युहल काफिरून’ और ‘कुल हुवल्लाहु अहद और सूरः ‘कुल अऊजु बिरब्बिल फलक व कुल अअजु बिरब्बिन्नास पढ़ा करूं। – मिश्कात

फायदा हर फर्ज़ नमाज़ के बाद 33 बार-शुब्हानअल्लाह और 33 बार अलहम्दुलिल्लाह और 34 बार ‘अल्लाहु अक्बर पढ़ने की बहुत ज़्यादा फज़ीलत हदीसों में आयी है और इसके

पढ़ने का एक तरीका यह है कि तीनों को 33 बार पढ़े और पूरा सौ करने के लिए एक बार यह कलिमा पढ़ ले-

لَآ اِلَهَ اِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَیْءٍ قَدِيرُ

ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहू ला शरीका लहू लहुल मुल्कू वलहुल हम्दु वहुवा अला कुल्लि शैइन कदीर०

तीसरा तरीका यह है कि 25, 25 बार सुब्हानअल्लाह, अल्हम्दु लिल्लाह और अल्लाहु अक्बर कहे और 25 बार ला इलाहा इल्लल्लाहू कह ले। (ये सब रिवायतें मिश्कात में हैं।)

हज़रत अबू उमामा रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले अक्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सवाल किया गया कि कौन सी दुआ कुबूलियत का दर्जा सबसे ज़्यादा रखती है ? इसके जवाब में आपने फरमाया कि जो दुआ रात के पिछले हिस्से में (यानी तहज्जुद के वक़्त) और फर्ज नमाज़ों के बाद हो।

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