जब वुज़ू करना शुरू करे तो पहले
بسمِ اللَّهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيمِ
‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम कहे’। यानी शुरू करता हूं अल्लाह के नाम से, जो बड़ा मेहरबान निहायत ही रहम वाला है।
कुछ हदीसों में आया है कि उसका वुज़ू ही नहीं, जिसने ‘बिस्मिल्लाह न पढ़ी हो। (मिश्कात)
हदीस शरीफ में वुज़ू के शुरू में ‘अल्लाह का नाम लेना आया है, उसके लफ्ज नहीं आये । कुछ बुजुर्गों ने फरमाया है कि बिस्मिल्लाह पढ़ ले।
वुज़ू के दर्मियान यह दुआ पढ़ें
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اَللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي ذَنْبِي وَوَسِّعْ لِیْ فِیْ دَارِیْ وَبَارِكْ لِیْ فِیْ رِزْقِیْ
( حسن ، نسائی )
अल्लाहुम्मग्फ़िरली जंबी व वस्सियली फी दारी व बारिक ली फी रिज़्की०
– हिस्न नसई
तर्जुमा-
ऐ अल्लाह ! मेरे गुनाह बख़्श दे और मेरे (कब्र के) घर को फैला और मेरी रोज़ी में बरकत दे।
जब वुज़ू कर चुके तो आसमान की तरफ मुंह करके यह दुआ पढ़े
اَشْهَدُ اَنْ لَّا اِلَهَ اِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ وَاَشْهَدُ اَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ
अशहदुअल्ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहू ला शरीका लहू व अश्हदू अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुहु०
तर्जुमा
मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, वह तन्हा है, उसका कोई शरीक नहीं और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद सल्ल० अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल हैं।
इस दुआ को वुज़ू के बाद पढ़ने से पढ़ने वाले के लिए जन्नत के आठों दरवाज़े खोल दिए जाते हैं, जिस दरवाजे से चाहे दाखिल हो। मिश्कात
कुछ रिवायतों में इसको वुज़ू के बाद तीन बार पढ़ना आया है।
– हिस्ने हसीन
फिर यह दुआ पढ़े
اَللَّهُمَّ اجْعَلْنِیْ مِنَ التَّوَّابِينَ وَاجْعَلْنِي مِنَ الْمُتَطَهِّرِينَ
अल्लाहुम्मज अल्नी मिनत्तव्वाबीना वजअलनी मिनल मुता तहहिरीना ०
तर्जुमा-
ऐ अल्लाह ! मुझे बहुत तौबा करने वालों में और बहुत पाक रहने वालों में शामिल फरमा। हिस्न
और यह दुआ भी पढ़े
سُبْحَانَكَ اَللَّهُمَّ وَبِحَمْدِكَ اَشْهَدُ اَنْ لَّا اِلَهَ اِلَّا
اَنْتَ اَسْتَغْفِرُكَ وَاَتُوْبُ اِلَيْكَ
सुब्हा नका अल्लाहुम्मा व बिहम्दिका अश्हदु अल्ला-इलाहा इल्ला अन्ता अस्तगफिरूका व अतूबु इलैका – हिस्न (मुस्तद्रक)
तर्जुमा-
ऐ अल्लाह ! तू पाक है और मैं तेरी तारीफ बयान करता हूं। मैं गवाही देता हूं कि सिर्फ तू ही. माबूद है और मैं तुझसे मग्फिरत चाहता हूं और तेरे सामने तौबा करता हूं।